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भजन संहिता Chapter84 1 हे सेनाओं के यहोवा, तेरे निवास क्या ही प्रिय हैं! 2 मेरा प्राण यहोवा के आंगनोंकी अभिलाषा करते करते मूर्र्छित हो चला; मेरा तन मन दोंनो जीवते ईश्वर को पुकार रहे।। 3 हे सेनाओं के यहोवा, हे मेरे राजा, और मेरे परमेश्वर, तेरी वेदियोंमे गौरैया ने अपना बसेरा और शूपाबेनी ने घोंसला बना लिया है जिस में वह अपके बच्चे रखे। 4 क्या ही धन्य हैं वे, जो तेरे भवन में रहते हैं; वे तेरी स्तुति निरन्तर करते रहेंगे।। 5 क्या ही धन्य है, वह मनुष्य जो तुझ से शक्ति पाता है, और वे जिनको सिरयोन की सड़क की सुधि रहती है। 6 वें रोने की तराई में जाते हुए उसको सोतोंका स्थान बनाते हैं; फिर बरसात की अगली वृष्टि उसमें आशीष ही आशीष उपजाती है। 7 वे बल पर बल पाते जाते हैं; उन में से हर एक जन सिरयोन में परमेश्वर को अपना मुंह दिखाएगा।। 8 हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन, हे याकूब के परमेश्वर, कान लगा! 9 हे परमेश्वर, हे हमारी ढ़ाल, दृष्टि कर; और अपके अभिषिक्ति का मुख देख! 10 क्योंकि तेरे आंगनोंमें का एक दिन और कहीं के हजार दिन से उत्तम है। दुष्टोंके डेरोंमें वास करने से अपके परमेश्वर के भवन की डेवढ़ी पर खड़ा रहना ही मुझे अधिक भावता है। 11 क्योंकि यहोवा परमेश्वर सूर्य और ढाल है; यहोवा अनुग्रह करेगा, और महिमा देगा; और जो लोग खरी चाल चलते हैं; उन से वह कोई अच्छा पदार्थ रख न छोड़ेगा। 12 हे सेनाओं के यहोवा, क्या ही धन्य वह मनुष्य है, जो तुझ पर भरोसा रखता है!
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