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भजन संहिता Chapter18 1 हे परमेश्वर, हे मेरे बल, मैं तुझ से प्रेम करता हूं। 2 यहोवा मेरी चट्टान, और मेरा गढ़ और मेरा छुड़ानेवाला है; मेरा ईश्वर, मेरी चट्टान है, जिसका मैं शरणागत हूं, वह मेरी ढ़ाल और मेरी मुक्ति का गढ़ है। 3 मैं यहोवा को जो स्तुति के योग्य है पुकारूंगा; इस प्रकार मैं अपके शत्रुओं से बचाया जाऊंगा।। 4 मृत्यु की रस्सिक्कों मैं चारो ओर से घिर गया हूं, और अधर्म की बाढ़ ने मुझ को भयभीत कर दिया; 5 पाताल की रस्सियां मेरे चारो ओर थीं, और मृत्यु के फन्दे मुझ पर आए थे। 6 अपके संकट में मैं ने यहोवा परमेश्वर को पुकारा; मैं ने अपके परमेश्वर को दोहाई दी। और उस ने अपके मन्दिर में से मेरी बातें सुनी। और मेरी दोहाई उसके पास पहुंचकर उसके कानोंमें पड़ी।। 7 तब पृथ्वी हिल गई, और कांप उठी और पहाड़ोंकी नेवे कंपित होकर हिल गई क्योंकि वह अति क्रोधित हुआ था। 8 उसके नथनोंसे धुआं निकला, और उसके मुंह से आग निकलकर भस्म करने लगी; जिस से कोएले दहक उठे। 9 और वह स्वर्ग को नीचे झुकाकर उतर आया; और उसके पांवोंतले घोर अन्धकार था। 10 और वह करूब पर सवार होकर उड़ा, वरन पवन के पंखोंपर सवारी करके वेग से उड़ा। 11 उस ने अन्धिक्कारने को अपके छिपके का स्थान और अपके चारोंओर मेघोंके अन्धकार और आकाश की काली घटाओं का मण्डप बनाया। 12 उसकी उपस्थिति की झलक से उसकी काली घटाएं फट गई; ओले और अंगारे। 13 तब यहोवा आकाश में गरजा, और परमप्रधान ने अपक्की वाणी सुनाई, ओले ओर अंगारे।। 14 उस ने अपके तीर चला चलाकर उनको तितर बितर किया; वरन बिजलियां गिरा गिराकर उनको परास्त किया। 15 तब जल के नाले देख पके, और जगत की नेवें प्रगट हुई, यह तो यहोवा तेरी डांट से, और तेरे नथनोंकी सांस की झोंक से हुआ।। 16 उस ने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थांम लिया, और गहिरे जल में से खींच लिया। 17 उस ने मेरे बलवन्त शत्रु से, और उन से जो मुझ से घृणा करते थे मुझे छुड़ाया; क्योंकि वे अधिक सामर्थी थे। 18 मेरी विपत्ति के दिन वे मुझ पर आ पके। परन्तु यहोवा मेरा आश्रय था। 19 और उस ने मुझे निकालकर चौड़े स्थान में पहुंचाया, उस ने मुझ को छुड़ाया, क्योंकि वह मुझ से प्रसन्न था। 20 यहोवा ने मुझ से मेरे धर्म के अनुसार व्यवहार किया; और मेरे हाथोंकी शुद्धता के अनुसार उस ने मुझे बदला दिया। 21 क्योंकि मैं यहोवा के मार्गोंपर चलता रहा, और दुष्टता के कारण अपके परमेश्वर से दूर न हुआ। 22 क्योंकि उसके सारे निर्णय मेरे सम्मुख बने रहे और मैं ने उसकी विधियोंको न त्यागा। 23 और मैं उसके सम्मुख सिद्ध बना रहा, और अधर्म से अपके को बचाए रहा। 24 यहोवा ने मुझे मेरे धर्म के अनुसार बदला दिया, और मेरे हाथोंकी उस शुद्धता के अनुसार जिसे वह देखता था।। 25 दयावन्त के साथ तू अपके को दयावन्त दिखाता; और खरे पुरूष के साथ तू अपके को खरा दिखाता है। 26 शुद्ध के साथ तू अपके को शुद्ध दिखाता, और टेढ़े के साथ तू तिर्छा बनता है। 27 क्योंकि तू दी लोगोंको तो बचाता है; परन्तु घमण्ड भरी आंखोंको नीची करता है। 28 हां, तू ही मेरे दीपक को जलाता है; मेरा परमेश्वर यहोवा मेरे अन्धिक्कारने को उजियाला कर देता है। 29 क्योंकि तेरी सहाथता से मैं सेना पर धावा करता हूं; और अपके परमेश्वर की सहाथता से शहरपनाह को लांघ जाता हूं। 30 ईश्वर का मार्ग सच्चाई; यहोवा का वचन ताया हुआ है; वह अपके सब शरणागतोंकी ढाल है।। 31 यहोवा को छोड़ क्या कोई ईश्वर है? हमारे परमेश्वर को छोड़ क्या और कोई चट्टान है? 32 यह वही ईश्वर है, जो सामर्थ से मेरा कटिबन्ध बान्धता है, और मेरे मार्ग को सिद्ध करता है। 33 वही मेरे पैरोंको हरिणियोंके पैरोंके समान बनाता है, और मुझे मेरे ऊंचे स्थानोंपर खड़ा करता है। 34 वह मेरे हाथोंको युद्ध करना सिखाता है, इसलिथे मेरी बाहोंसे पीतल का धनुष झुक जाता है। 35 तू ने मुझ को अपके बचाव की ढाल दी है, तू अपके दहिने हाथ से मुझे सम्भाले हुए है, और मेरी नम्रता ने महत्व दिया है। 36 तू ने मेरे पैरोंके लिथे स्थान चौड़ा कर दिया, और मेरे पैर नहीं फिसले। 37 मैं अपके शत्रुओं का पीछा करके उन्हें पकड़ लूंगा; और जब तब उनका अन्त न करूं तब तक न लौटूंगा। 38 मैं उन्हें ऐसा बेधूंगा कि वे उठ न सकेंगे; वे मेरे पांवोंके नीचे गिर पकेंगे। 39 क्योंकि तू ने युद्ध के लिथे मेरी कमर में शक्ति का पटुका बान्धा है; और मेरे विरोधियोंको मेरे सम्मुख नीचा कर दिया। 40 तू ने मेरे शत्रुओं की पीठ मेरी ओर फेर दी, ताकि मैं उनको काट डालूं जो मुझ से द्वेष रखते हैं। 41 उन्होंने दोहाई तो दी परन्तु उन्हें कोई भी बचानेवाला न मिला, उन्होंने यहोवा की भी दोहाई दी, परन्तु उस ने भी उनको उत्तर न दिया। 42 तब मैं ने उनको कूट कूटकर पवन से उड़ाई हुई धूलि के समान कर दिया; मैं ने उनको गली कूचोंकी कीचड़ के समान निकाल फेंका।। 43 तू ने मुझे प्रजा के झगड़ोंसे भी छुड़ाया; तू ने मुझे अन्यजातियोंका प्रधान बनाया है; जिन लोगोंको मैं जानता भी न था वे मेरे अधीन हो गथे। 44 मेरा नाम सुनते ही वे मेरी आज्ञा का पालन करेंगे; परदेशी मेरे वश में हो जाएंगे। 45 परदेशी मुर्झा जाएंगे, और अपके किलोंमें से थरथराते हुए निकलेंगे।। 46 यहोवा परमेश्वर जीवित है; मेरी चट्टान धन्य है; और मेरे मुक्तिदाता परमेश्वर की बड़ाई हो। 47 धन्य है मेरा पलटा लेनेवाला ईश्वर! जिस ने देश देश के लोगोंको मेरे वंश में कर दिया है; 48 और मुझे मेरे शत्रुओं से छुड़ाया है; तू मुझ को मेरे विरोधियोंसे ऊंचा करता, और उपद्रवी पुरूष से बचाता है।। 49 इस कारण मैं जाति जाति के साम्हने तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम का भजन गाऊंगा। 50 वह अपके ठहराए हुए राजा का बड़ा उद्धार करता है, वह अपके अभिषिक्त दाऊद पर और उसके वंश पर युगानुयुग करूणा करता रहेगा।।
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