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Psalms 117:1       
 
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प्रकाशित वाक्य
 
 

 
 
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भजन संहिता Chapter104
 
1 हे मेरे मन, तू यहोवा को धन्य कह! हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू अत्यन्त महान है! तू विभव और ऐश्वर्य का वस्त्रा पहिने हुए है,
 
2 जो उजियाले को चादर की नाई ओढ़े रहता है, और आकाश को तम्बू के समान ताने रहता है,
 
3 जो अपक्की अटारियोंकी कड़ियां जल में धरता है, और मेघोंको अपना रथ बनाता है, और पवन के पंखोंपर चलता है,
 
4 जो पवनोंको अपके दूत, और धधकती आग को अपके टहलुए बनाता है।।
 
5 तू ने पृथ्वी को उसकी नीव पर स्थिर किया है, ताकि वह कभी न डगमगाए।
 
6 तू ने उसको गहिरे सागर से ढांप दिया है जैसे वस्त्रा से; जल पहाड़ोंके ऊपर ठहर गया।
 
7 तेरी घुड़की से वह भाग गया; तेरे गरजने का शब्द सुनते ही, वह उतावली करके बह गया।
 
8 वह पहाड़ोंपर चढ़ गया, और तराईयोंके मार्ग से उस स्थान में उतर गया जिसे तू ने उसके लिथे तैयार किया था।
 
9 तू ने एक सिवाना ठहराया जिसको वह नहीं लांघ सकता है, और न फिरकर स्थल को ढांप सकता है।।
 
10 तू नालोंमें सोतोंको बहाता है; वे पहाड़ोंके बीच से बहते हैं,
 
11 उन से मैदान के सब जीव- जन्तु जल पीते हैं; जंगली गदहे भी अपक्की प्यास बुझा लेते हैं।
 
12 उनके पास आकाश के पक्षी बसेरा करते, और डालियोंके बीच में से बोलते हैं।
 
13 तू अपक्की अटारियोंमें से पहाड़ोंको सींचता है तेरे कामोंके फल से पृथ्वी तृप्त रहती है।।
 
14 तू पशुओं के लिथे घास, और मनुष्योंके काम के लिथे अन्नादि उपजाता है, और इस रीति भूमि से वह भोजन- वस्तुएं उत्पन्न करता है,
 
15 और दाखमधु जिस से मनुष्य का मन आनन्दित होता है, और तेल जिस से उसका मुख चमकता है, और अन्न जिस से वह सम्भल जाता है।
 
16 यहोवा के वृक्ष तृप्त रहते हैं, अर्थात् लबानोन के देवदार जो उसी के लगाए हुए हैं।
 
17 उन में चिड़ियां अपके घोंसले बनाती हैं; लगलग का बसेरा सनौवर के वृक्षोंमें होता है।
 
18 ऊंचे पहाड़ जंगली बकरोंके लिथे हैं; और चट्टानें शापानोंके शरणस्थान हैं।
 
19 उस ने नियत समयोंके लिथे चन्द्रमा को बनाया है; सूर्य अपके अस्त होने का समय जानता है।
 
20 तू अन्धकार करता है, तब रात हो जाती है; जिस में वन के सब जीव जन्तु घूमते फिरते हैं।
 
21 जवान सिंह अहेर के लिथे गरजते हैं, और ईश्वर से अपना आहार मांगते हैं।
 
22 सूर्य उदय होते ही वे चले जाते हैं और अपक्की मांदोंमें जा बैठते हैं।
 
23 तब मनुष्य अपके काम के लिथे और सन्ध्या तक परिश्रम करने के लिथे निकलता है।
 
24 हे यहोवा तेरे काम अनगिनित हैं! इन सब वस्तुओं को तू ने बुद्धि से बनाया है; पृथ्वी तेरी सम्पत्ति से परिपूर्ण है।
 
25 इसी प्रकार समुद्र बड़ा और बहुत ही चौड़ा है, और उस में अनगिनित जलचक्की जीव- जन्तु, क्या छोटे, क्या बड़े भरे पके हैं।
 
26 उस में जहाज भी आते जाते हैं, और लिब्यातान भी जिसे तू ने वहां खेलने के लिथे बनाया है।।
 
27 इन सब को तेरा ही आसरा है, कि तू उनका आहार समय पर दिया करे।
 
28 तू उन्हें देता हे, वे चुन लेते हैं; तू अपक्की मुट्ठी खोलता है और वे उत्तम पदार्थोंसे तृप्त होते हैं।
 
29 तू मुख फेर लेता है, और वे घबरा जाते हैं; तू उनकी सांस ले लेता है, और उनके प्राण छूट जाते हैं और मिट्टी में फिर मिल जाते हैं।
 
30 फिर तू अपक्की ओर से सांस भेजता है, और वे सिरजे जाते हैं; और तू धरती को नया कर देता है।।
 
31 यहोवा की महिमा सदा काल बनी रहे, यहोवा अपके कामोंसे आन्दित होवे!
 
32 उसकी दृष्टि ही से पृथ्वी कांप उठती है, और उसके छूते ही पहाड़ोंसे धुआं निकलता है।
 
33 मैं जीवन भर यहोवा का गीत गाता रहूंगा; जब तक मैं बना रहूंगा तब तक अपके परमेश्वर का भजन गाता रहूंगा।
 
34 मेरा ध्यान करना, उसको प्रिय लगे, क्योंकि मैं तो याहेवा के कारण आनन्दित रहूंगा।
 
35 पापी लोग पृथ्वी पर से मिट जाएं, और दुष्ट लोग आगे को न रहें! हे मेरे मन यहोवा को धन्य कह! याह की स्तुति करो!
 
 

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