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Psalms 117:1       
 
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भजन संहिता Chapter10
 
1 हे यहोवा तू क्योंदूर खड़ा रहता है? संकट के समय में क्योंछिपा रहता है?
 
2 दुष्टोंके अहंकार के कारण दी मनुष्य खदेड़े जाते हैं; वे अपक्की ही निकाली हुई युक्तियोंमें फंस जाएं।।
 
3 क्योंकि दुष्ट अपक्की अभिलाषा पर घमण्ड करता है, और लोभी परमेश्वर को त्याग देता है और उसका तिरस्कार करता है।।
 
4 दुष्ट अपके अभिमान के कारण कहता है कि वह लेखा नहीं लेने का; उसका पूरा विचार यही है कि कोई परमेश्वर है ही नहीं।।
 
5 वह अपके मार्ग पर दृढ़ता से बना रहता है; तेरे न्याय के विचार ऐसे ऊंचे पर होते हैं, कि उसकी दृष्टि वहां तक नहीं पहुंचक्की; जितने उसके विरोधी हैं उन पर वह फुंकारता है।
 
6 वह अपके मन में कहता है कि मैं कभी टलने का नहीं: मैं पीढ़ी से पीढ़ी तक दु:ख से बचा रहूंगा।।
 
7 उसका मुंह शाप और छल और अन्धेर से भरा है; उत्पात और अनर्थ की बातें उसके मुंह में हैं।
 
8 वह गांवोंके घतोंमें बैठा करता है, और गुप्त स्थानोंमें निर्दोष को घात करता है, उसकी आंखे लाचार की घात में लगी रहती है।
 
9 जैसा सिंह अपक्की झाड़ी में वैसा ही वह भी छिपकर घात में बैठा करता है; वह दीन को पकड़ने के लिथे घात लगाए रहता है,
 
10 वह दीन को अपके जाल में फंसाकर घसीट लाता है, तब उसे पकड़ लेता है।
 
11 वह झुक जाता है और वह दबक कर बैठता है; और लाचार लोग उसके महाबली हाथोंसे पटके जाते हैं।
 
12 वह अपके मन में सोचता है, कि ईश्वर भूल गया, वह अपना मुंह छिपाता है; वह कभी नहीं देखेगा।।
 
13 उठ, हे यहोवा; हे ईश्वर, अपना हाथ बढ़ा; और दीनोंको न भूल।
 
14 परमेश्वर को दुष्ट क्योंतुच्छ जानता है, और अपके मन में कहता है कि तू लेखा न लेगा?
 
15 तू ने देख लिया है, क्योंकि तू उत्पात और कलपाने पर दुष्टि रखता है, ताकि उसका पलटा अपके हाथ में रखे; लाचार अपके को तेरे हाथ में सौंपता है; अनाथोंका तू ही सहाथक रहा है। दुष्ट की भुजा को तोड़ डाल;
 
16 यहोवा अनन्तकाल के लिथे महाराज है; उसके देश में से अन्यजाति लोग नाश हो गए हैं।।
 
17 हे यहोवा, तू ने नम्र लोगोंकी अभिलाषा सुनी है; तू उनका मन तैयार करेगा, तू कान लगाकर सुनेगा
 
18 कि अनाथ और पिसे हुए का न्याय करे, ताकि मनुष्य जो मिट्टी से बना है फिर भय दिखाने न पाए।।
 
 

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