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Psalms 117:1       
 
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प्रकाशित वाक्य
 
 

 
 
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नीतिवचन Chapter27
 
1 कल के दिन के विषय में मत फूल, क्योंकि तू नहीं जानता कि दिन भर में क्या होगा।
 
2 तेरी प्रशंसा और लोग करें तो करें, परन्तु तू आप न करना; दूसरा तूफे सराहे तो सराहे, परन्तु तू अपक्की सराहना न करना।
 
3 पत्यर तो भारी है और बालू में बोफ है, परन्तु मूढ का क्रोध उन दोनोंसे भी भारी है।
 
4 क्रोध तो क्रूर, और प्रकोप धारा के समान होता है, परन्तु जब कोई जल उठता है, तब कौन ठहर सकता है?
 
5 खुली हुई डांट गुप्त प्रेम से उत्तम है।
 
6 जो घाव मित्र के हाथ से लगें वह विश्वासयोग्य है परन्तु बैरी अधिक चुम्बन करता है।
 
7 सन्तुष्ट होने पर मधु का छत्ता भी फीका लगता है, परन्तु भूखे को सब कड़वी वस्तुएं भी मीठी जान पड़ती हैं।
 
8 स्यान छोड़कर घूमनेवाला मनुष्य उस चिडिय़ा के समान है, जो घोंसला छोड़कर उड़ती फिरती है।
 
9 जैसे तेल और सुगन्ध से, वैसे ही मित्र के ह्रृदय की मनोहर सम्मति से मन आनन्दित होता है।
 
10 जो तेरा और तेरे पिता का भी मित्र हो उसे न छोड़ना; और अपक्की विपत्ति के दिन अपके भाई के घर न जाना। प्रेम करनेवाला पड़ोसी, दूर रहनेवाले भाई से कहीं उत्तम है।
 
11 हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपके निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूंगा।
 
12 बुद्धिमान मनुष्य विपत्ति को आती देखकर छिप जाता है; परन्तु भोले लोग आगे बढ़े चले जाते और हानि उठाते हैं।
 
13 जो पराए का उत्तरदायी हो उसका कपड़ा, और जो अनजान का उत्तरदायी हो उस से बन्धक की वस्तु ले ले।
 
14 जो भोर को उठकर अपके पड़ोसी को ऊंचे शब्द से आशीर्वाद देता है, उसके लिथे यह शाप गिना जाता है।
 
15 फड़ी के दिन पानी का लगातार टपकना, और फगडालू पत्नी दोनोंएक से हैं;
 
16 जो उसको रोक रखे, वह वायु को भी रोक रखेगा और दहिने हाथ से वह तेल पकड़ेगा।
 
17 जैसे लोहा लोहे को चमका देता है, वैसे ही मनुष्य का मुख अपके मित्र की संगति से चमकदार हो जाता है।
 
18 जो अंजीर के पेड़ की रझा करता है वह उसका फल खाता है, इसी रीति से जो अपके स्वामी की सेवा करता उसकी महिमा होती है।
 
19 जैसे जल में मुख की परछाई सुख से मिलती है, वैसे ही एक मनुष्य का मन दूसरे मनुष्य के मन से मिलता है।
 
20 जैसे अधोलोक और विनाशलोक, वैसे ही मनुष्य की आंखें भी तृप्त नहीं होती।
 
21 जैसे चान्दी के लिथे कुठाई और सोने के लिथे भट्ठी हैं, वैसे ही मनुष्य के लिथे उसकी प्रशंसा है।
 
22 चाहे तू मूर्ख को अनाज के बीच ओखली में डालकर मूसल से कूटे, तौभी उसकी मूर्खता नहीं जाने की।
 
23 अपक्की भेड़-बकरियोंकी दशा भली-भांति मन लगाकर जान ले, और अपके सब पशुओं के फुण्डोंकी देखभाल उचित रीति से कर;
 
24 क्योंकि सम्पत्ति सदा नहीं ठहरती; और क्या राजमुकुट पीढ़ी-पीढ़ी चला जाता है?
 
25 कटी हुई घास उठ गई, नई घास दिखाई देती हैं, पहाड़ोंकी हरियाली काटकर इकट्ठी की गई है;
 
26 भेड़ोंके बच्चे तेरे वस्त्र के लिथे हैं, और बकरोंके द्वारा खेत का मूल्य दिया जाएगा;
 
27 और बकरियोंका इतना दूध होगा कि तू अपके घराने समेत पेट भरके पिया करेगा, और तेरी लौण्उियोंका भी जीवन निर्वाह होता रहेगा।।
 
 

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