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Psalms 117:1       
 
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प्रकाशित वाक्य
 
 

 
 
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नीतिवचन Chapter17
 
1 चैन के साय सूखा टुकड़ा, उस घर की अपेझा उत्तम है जो मेलबलि-पशुओं से भरा हो, परन्तु उस में फगड़े रगड़े हों।
 
2 बुद्धि से चलनेवाला दास अपके स्वामी के उस पुत्र पर जो लज्जा का कारण होता है प्रभुता करेगा, और उस पुत्र के भाइयोंके बीच भागी होगा।
 
3 चान्दी के लिथे कुठाली, और सोने के लिथे भट्ठी हाती है, परन्तु मनोंको यहोवा जांचता है।
 
4 कुकर्मी अनर्य बात को ध्यान देकर सुनता है, और फूठा मनुष्य दुष्टता की बात की ओर कान लगाता है।
 
5 जो निर्धन को ठट्ठोंमें उड़ाता है, वह उसके कर्त्ता की निन्दा करता है; और जो किसी की विपत्ति पर हंसता, वह निर्दोष नहीं ठहरेगा।
 
6 बूढ़ोंकी शोभा उनके नाती पोते हैं; और बाल-बच्चोंकी शोभा उनके माता-पिता हैं।
 
7 मूढ़ तो उत्तम बात फबती नहीं, और अधिक करके प्रधान को फूठी बात नहीं फबती।
 
8 देनेवाले के हाथ में घूस मोह लेनेवाले मणि का काम देता है; जिधर ऐसा पुरूष फिरता, उधर ही उसका काम सुफल होता है।
 
9 जो दूसरे के अपराध को ढांप देता, वह प्रेम का खोजी ठहरता है, परन्तु जो बात की चर्चा बार बार करता है, वह परम मित्रोंमें भी फूट करा देता है।
 
10 एक घुड़की समझनेवाले के मन में जितनी गड़ जाती है, उतना सौ बार मार खाना मूर्ख के मन में नहीं गड़ता।
 
11 बुरा मनुष्य दंगे ही का यत्न करता है, इसलिथे उसके पास क्रूर दूत भेजा जाएगा।
 
12 बच्चा-छीनी-हुई-रीछनी से मिलना तो भला है, परन्तु मूढ़ता में डूबे हुए मूर्ख से मिलना भला नहीं।
 
13 जो कोई भलाई के बदले में बुराई करे, उसके घर से बुराई दूर न होगी।
 
14 फगड़े का आरम्भ बान्ध के छेद के समान है, फगड़ा बढ़ने से पहिले उसको छोड़ देता उचित है।
 
15 जो दोषी को निर्दोष, और जो निर्दोष को दोषी ठहराता है, उन दोनोंसे यहोवा घृणा करता है।
 
16 बुद्धि मोल लेने के लिथे मूर्ख अपके हाथ में दाम क्योंलिए हैं? वह उसे चाहता ही नहीं।
 
17 मित्र सब समयोंमें प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।
 
18 निर्बुद्धि मनुष्य हाथ पर हाथ मारता है, और अपके पड़ोसी के सामने उत्तरदायी होता है।
 
19 जो फगड़े-रगड़े में प्रीति रखता, वह अपराण करने में भी प्रीति रखता है, और जो अपके फाटक को बड़ा करता, वह अपके विनाश के लिथे यत्न करता है।
 
20 जो मन का टेढ़ा है, उसका कल्याण नहीं होता, और उलट-फेर की बात करनेवाला विपत्ति में पड़ता है।
 
21 जो मूर्ख को जन्माता है वह उस से दु:ख ही पाता है; और मूढ़ के पिता को आनन्द नहीं होता।
 
22 मन का आनन्द अच्छी औषधि है, परन्तु मन के टूटने से हड्डियां सूख जाती हैं।
 
23 दुष्ट जन न्याय बिगाड़ने के लिथे, अपक्की गांठ से घूस निकालता है।
 
24 बुद्धि समझनेवाले के साम्हने ही रहती है, परन्तु मूर्ख की आंखे पृय्वी के दूर दूर देशोंमें लगी रहती है।
 
25 मूर्ख पुत्र से पिता उदास होता है, और जननी को शोक होता है।
 
26 फिर धर्मी से दण्ड लेना, और प्रधानोंको सिधाई के कारण पिटवाना, दोनोंकाम अच्छे नहीं हैं।
 
27 जो संभलकर बोलता है, वही ज्ञानी ठहरता है; और जिसी आत्मा शान्त रहती है, सोई समझवाला पुरूष ठहरता है।
 
28 मूढ़ भी जब चुप रहता है, तब बुद्धिमान गिना जाता है; और जो अपना मुंह बन्द रखता वह समझवाला गिना जाता है।।
 
 

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